वही अंदाज़ पुराने नहीं जिद्दत कोई नया लहजा नहीं अब ज़ेर-ए-समाअत कोई लय नई और नया आहंग उठा नग़्मा-तराज़ जाग उठे ख़ुफ़्ता लहु में नई हिद्दत कोई झूट पर लाख मुलम्मा' हो सदाक़त मलफ़ूफ़ खुल ही जाती है नहीं खुलती हक़ीक़त कोई किस लिए ख़्वार है खोई हुई ग़ैरत को जगा गिड़गिड़ाने से नहीं मिलती है इज़्ज़त कोई लाख कर वा'दा-ख़िलाफ़ी-ओ-तग़ाफ़ुल ऐ दोस्त दिल से कम होनी नहीं तेरी मोहब्बत कोई मुझ को बख़्शा है मिरे रब ने ये एजाज़-ए-सुख़न मैं ने बातिल की नहीं करनी हिमायत कोई रुस्तगारी है किसे रंज-ओ-अलम से 'मीना' अर्सा-ए-जेहद है यारो नहीं जन्नत कोई