'वहशत'-ए-मुब्तला ख़ुदा के लिए जान देता है क्यूँ वफ़ा के लिए आश्ना सब हुए हैं बेगाने एक बेगाना-आश्ना के लिए हम ने आलम से बेवफ़ाई की एक माशूक़-ए-बेवफ़ा के लिए था उसे ज़ौक़-ए-आशिक़-आज़ारी ख़ूब मैं ने मज़े जफ़ा के लिए ग़ालिब आई फ़रामुशी उस की वादा तड़पा किया वफ़ा के लिए ये भी तेरी गदा-नवाज़ी थी मैं ने बोसे जो नक़्श-ए-पा के लिए ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा ने किया है ख़ाक सुर्मा हूँ चश्म-ए-सुर्मा-सा के लिए जुस्तुजू नंग-ए-आरज़ू निकली दर्द रुस्वा हुआ दवा के लिए बढ़ चली है बहुत हया तेरी मुझ को रुस्वा न कर ख़ुदा के लिए है ख़मोशी मुझे ज़बाँ 'वहशत' फ़िक्र क्या अर्ज़-ए-मुद्दआ के लिए