वहशत थी वो कि अपना गरेबाँ नहीं रहा ऐसी चली हवा कि चराग़ाँ नहीं रहा तुझ को भुला दूँ ऐसा कुछ इम्कान तो नहीं पर दिल में तेरी याद का अरमाँ नहीं रहा हर बार गर्दिशों की नज़र मुझ पे ही पड़ी हैराँ हुआ हूँ यूँ कि मैं हैराँ नहीं रहा इक चारागर की चारागरी का कमाल है काँटा कोई क़रीन-ए-रग-ए-जाँ नहीं रहा गर कुछ करम किए तो सितम उस से भी सिवा दुनिया का मुझ पे अब कोई एहसाँ नहीं रहा गो छिन गई क़बा मिरी दस्तार भी गई रब का करम रहा कि मैं उर्यां नहीं रहा