चेहरे पे जो रौनक़ है वो अंदर तो नहीं है जो यार का दिल मोह ले वो जौहर तो नहीं है सद-शुक्र क़नाअत की मुझे मिल गई दौलत नादार हूँ रहज़न का मुझे डर तो नहीं है साकिन हूँ जहाँ शक्क-ओ-हसद बुग़्ज़-ओ-तनाफ़ुर रहने को मकाँ है वो मगर घर तो नहीं है दस्तक दिए जाता है कोई अजनबी होगा मौजूद हो जो दिल में वो बाहर तो नहीं है उस का वही जल्वा है वही जल्वागरी है हाँ मुझ को ही ताब-ए-रुख़-ए-अनवर तो नहीं है क्यों करता है वो हश्र बपा इश्क़ पे उस से माशूक़ है वो दावर-ए-महशर तो नहीं है