वहशतों के नगर में रहते हैं

वहशतों के नगर में रहते हैं
या'नी ज़ुल्म-ओ-ज़रर में रहते हैं

बार सर पर उठाए नफ़रत का
लोग शहर-ए-ख़तर में रहते हैं

मंज़िलों की तलाश में हम लोग
रात दिन बस सफ़र में रहते हैं

मसनद-ए-दिल पे जिन का क़ब्ज़ा हो
कब वो ज़ेर-ओ-ज़बर में रहते हैं

वो जो रहते थे दिल की दुनिया में
अब दुखों के खंडर में रहते हैं

हम वो जिद्दत-पसंद हैं जो 'हिरा'
करगसों के शहर में रहते हैं


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