ज़िंदगी सौंपी थी जिन को वो जुआरी निकले हम ने समझा उन्हें रहबर वो शिकारी निकले कोशिशें कीं थीं बहुत शम्अ जलाने की मगर सब ही दुनिया में अँधेरों के पुजारी निकले हार जाने का कोई ख़ौफ़ नहीं था लेकिन मेरे दुश्मन मिरे आ'साब पे तारी निकले कल तलक जो हमें ख़ैरात दिया करते थे हाए महशर में वही लोग भिकारी निकले मैं अगर आह भरूँ उन को हँसी आती है मेरे अहबाब तो एहसास से आरी निकले