वक़्त के दश्त में चौंके हुए आहू की तरह हम परेशान अज़ल से रहे ख़ुशबू की तरह बंद दरवाज़ों के अंदर जो हुई थी इक बात शहर में फैल गई फूल की ख़ुशबू की तरह शब की तन्हाई में नग़्मा सा बिखर जाता है सूखे पत्तों में इक आवाज़ है घुंघरू की तरह इक हसीं जिस्म को आग़ोश में भरने के लिए आरज़ू फैली हुई है किसी बाज़ू की तरह हिज्र का दर्द कई सदियों से बैठा है 'सबा' दिल के पीपल की घनी छाँव में साधू की तरह