वक़्त ने हर-वक़्त ही ज़ेर-ओ-ज़बर जारी रखा हम ने भी हर हाल में अपना सफ़र जारी रखा मुझ को कठ-पुतली बना कर रक़्स करवाती रही ज़िंदगी ने ये तमाशा उम्र भर जारी रखा उँगलियों से आ रही है आज भी ख़ुशबू तिरी जादूई सी इस छुवन ने है असर जारी रखा जाने कितने पत्थरों से चोट की हम ने मगर पेड़ ने फिर भी हमें देना समर जारी रखा मुश्किलों के दौर में भी हौसला छोड़ा नहीं आबले तलवों में थे फिर भी सफ़र जारी रखा यूँ तो आवारा-मिज़ाजी में कभी हम कम न थे फिर भी हम ने लौट आना अपने घर जारी रखा कैसे कहते हैं मुकम्मल शेर या उम्दा ग़ज़ल सीखना 'अगयात' ने इल्म-ओ-हुनर जारी रखा