वक़्त ये फ़ैसला करता नहीं तदबीर के साथ कौन उलझा है तिरी ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर के साथ और होंगे जिन्हें रास आई है दुनिया की बहार हम तो उलझे ही रहे गर्दिश-ए-तक़दीर के साथ राह-रौ कोई हो मंज़िल पे पहुँच जाता है कभी क़िस्मत के सहारे कभी तदबीर के साथ किसी फ़रज़ाने को तौफ़ीक़-ए-मदद भी न हुई कोई दीवाना सिसकता रहा ज़ंजीर के साथ क़ाएदा हो तो हर इक शख़्स निकल पड़ता है कभी तख़रीब के साथ और कभी ता'मीर के साथ जुरअत-ए-इश्क़ सज़ा दे कि जज़ा हम ने तो अपनी तस्वीर लगा दी तिरी तस्वीर के साथ दामन-ए-फ़हम-ओ-फ़रासत हो अगर हाथों में काम बिगड़े भी सँवर जाते हैं तदबीर के साथ ये सहर है कि नहीं कौन हमें बतलाए ज़ुल्मत-ए-शब भी नज़र आई है तनवीर के साथ