वार से हम दिल-ए-बेदार तक आ पहुँचे हैं ज़िंदगी के नए मेआ'र तक आ पहुँचे हैं ख़ुश-बयाँ तल्ख़ी-ए-गुफ़्तार तक आ पहुँचे हैं सीना-ए-गुल से लब-ए-ख़ार तक आ पहुँचे हैं हर क़दम जलते हैं जब ख़ुद ही चराग़-ए-मंज़िल लोग इस गर्मी-ए-रफ़्तार तक आ पहुँचे हैं अहल-ए-दिल आज हुए अज़्मत-ए-दिल के क़ाइल बे-झिजक अंजुमन-ए-यार तक आ पहुँचे हैं क्यों सुबुक-सर हुए जाते हैं नज़र में अपनी किस के एहसान-ए-गिराँ-बार तक आ पहुँचे हैं सोज़-ए-दिल बिजलियाँ बन जाता है जिस में ढल कर साज़-ए-अन्फ़ास के उस तार तक आ पहुँचे हैं ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-दौराँ से बदल जाए जहाँ हम उस आईना-ए-किरदार तक आ पहुँचे हैं ख़ैर-मक़्दम के फ़रेबों को समझने के लिए आज इक बज़्म-ए-रिया-कार तक आ पहुँचे हैं ख़ुद जहाँ दार-ओ-रसन करते हैं ताज़ीम-ए-हयात हम उसी रिफ़अत-ए-ईसार तक आ पहुँचे हैं क्यों न भड़काऊँ 'शिफ़ा' अज़्म के शो'ले बढ़ कर मरहले अब मिरे अशआ'र तक आ पहुँचे हैं