अब तो अक्सर ये सोचता हूँ मैं बा-वफ़ा हूँ कि बेवफ़ा हूँ मैं छा गया कौन मेरी हस्ती पर सारे आलम पे छा गया हूँ मैं क्यों कोई नाख़ुदा तलाश करूँ ख़ुद ही कश्ती का नाख़ुदा हूँ मैं अब मुझे ढूँढना नहीं आसान तेरी यादों में खो चुका हूँ मैं ज़िंदगी की मैं भीक क्यों माँगूँ ज़िंदगी से तो मावरा हूँ मैं आलम-ए-होश ने क़दम चूमे बे-ख़ुदी में जिधर गया हूँ मैं हादसों ने मुझे तराशा है वर्ना पत्थर से खुरदुरा हूँ मैं क्या ग़रज़ है मुझे फ़रिश्तों से कोई इंसान ढूँढता हूँ मैं इस तरह देखते हैं लोग मुझे जैसे तेरी कोई अदा हूँ मैं आप ज़हमत न कीजिए ऐ ख़िज़्र अपनी मंज़िल से आश्ना हूँ मैं कोई कह दे ये बिजलियों से 'बहार' फिर नशेमन बना रहा हूँ मैं