वस्फ़ रक्खा है वो क़लंदर का जो मिटा दे लिखा मुक़द्दर का संग-दिल के जवाब में मुझ को दिल बनाना पड़ा है पत्थर का उम्र भर तिश्ना-काम रहना है पानी खारा है जब समुंदर का उन से मिल कर ये इंकिशाफ़ हुआ आँख करती है काम ख़ंजर का 'शम्सी' दुनिया पे हुक्मरानी को हौसला चाहिए सिकंदर का