न इंतिज़ार में याँ आँख एक आँ लगी न हाए हाए में तालू से शब ज़बाँ लगी जला जिगर तब ग़म से फड़कने जाँ लगी इलाही ख़ैर कि अब आग पास आँ लगी गली में उस की न फिर आते हम तो क्या करते तबीअत अपनी न जन्नत के दरमियाँ लगी जफ़ा-ए-ग़ैर का शिकवा था तेरा था किया ज़िक्र अबस ये बात बुरी तुझ को बद-गुमाँ लगी हँसो न तुम तो मिरे हाल पर मैं हूँ वो ज़लील कि जिस की ज़िल्लत ओ ख़्वारी से तुम को शाँ लगी कहाँ वो आह-ओ-फ़ुग़ाँ दम भी ले नहीं सकते हमें ये तेरी दुआ-ए-बद आसमाँ लगी मैं और उस को बुलाऊँगा रोज़-ए-वस्ल में लो अजल भी करने मोहब्बत का इम्तिहाँ लगी ब-रंग सूरत-ए-बुलबुल नहीं नवा-संजी ये क्या हुआ कि चुप ऐ गुलिस्ताँ बयाँ लगी सदा तुम्हारी तरफ़ जी लगा ही रहता है तुम्हारे वास्ते है दिल को मेहरबाँ लगी वो कीना-तूज़ था 'मोमिन' तो दिल लगाया क्यूँ कहो तो क्या तुम्हें ऐसी भली वो आँ लगी