वो भी क्या दिन थे कि जब चाह न थी प्यार न था

वो भी क्या दिन थे कि जब चाह न थी प्यार न था
हिज्र का रंज न था इश्क़ का आज़ार न था

बे-ख़ुदी तेरा बुरा हो मुझे जब होश आया
दिल न था सीने में पहलू में वो अय्यार न था

दे के दिल उन को पड़ी जान ग़ज़ब में मेरी
वस्ल को कहिए तो कहते हैं कि इक़रार न था

क्यों लहद को मिरे ठुकरा के मिटाया उस ने
मेरी जानिब से मुकद्दर जो सितमगार न था

लब पे फ़रियाद रही अश्क रहे आँखों में
कब तिरा ध्यान मुझे ऐ बुत-ए-अय्यार न था

ये भी दिन हैं कि हसीनों पे मिटा जाता हूँ
वो भी दिन थे कि मुझे इश्क़ का आज़ार न था

हश्र में फ़ज़्ल से अपने मुझे हक़ ने बख़्शा
गो कि दुनिया में कोई मुझ सा सियहकार न था

निगह-ए-मस्त ने तेरी ये दिखाई तासीर
सब थे बदमस्त कोई रात को हुशियार न था

ऐ जुनूँ मौसम-ए-गुल में तिरे हाथों हे हे
दामन-ओ-जेब में देखा तो कोई तार न था

पीटता था कभी सर को तो कभी सीने को
शब-ए-तन्हाई में ऐ शोख़ मैं बेकार न था

कूचा-ए-यार से यूँ शैख़-ओ-बरहमन निकले
सर पे दस्तार न थी दोष पे ज़ुन्नार न था

क्या मोहब्बत ने मिरी अपनी दिखाई तासीर
किस लिए बज़्म में शब मजमा-ए-अग़्यार न था

हज्व-ए-मय करते थे कल हज़रत-ए-वाइ'ज़ सर-ए-राह
ख़ैरियत गुज़री कि सुनता कोई मय-ख़्वार न था

यूँ तो शब बज़्म में हर एक गया और आया
एक बद-बख़्त मैं ही था जिसे वाँ यार न था

जागता मेरा नसीबा जो शब-ए-वस्ल-ए-अदू
पासबाँ ये तो तिरा दीदा-ए-बेदार न था

दर्द-ओ-अंदोह-ओ-ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम ऐ 'नश्तर'
एक दुनिया थी मिरी लाश पे वो यार न था


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