हँसते हैं फूल न ग़ुंचे ही मुस्कुराए हैं बहार में भी चमन पर ख़िज़ाँ के साए हैं कमाल-ए-हिम्मत-ए-अहल-ए-जुनूँ ख़ुदा रक्खे ग़म-ए-हयात को हम ने गले लगाए हैं ये इत्तिफ़ाक़ तो देखो गिरी है बर्क़ वहीं चमन में हम ने जहाँ आशियाँ बनाए हैं समझ न ये कि अमाँ मिल गई ग़मों से हमें वबा के दर्द को सीने में मुस्कुराए हैं ये तेरी बादा-गुसारी की ईद है साक़ी है फ़स्ल-ए-गुल सर-ए-मय-ख़ाना अब्र छाए हैं बढ़ी है गर्दिश-ए-अय्याम रहनुमाई को रह-ए-वफ़ा में जो हम ने क़दम बढ़ाए हैं हज़ार ख़ून-ए-तमन्ना हुआ मगर ऐ दोस्त तिरे सितम का गिला कब ज़बाँ पे लाए हैं गिला नहीं ग़म-ए-सब्र-आज़मा का कुछ तुझ से ख़ुशी से हम ने ये बार-ए-अलम उठाए हैं