वो चराग़ों की बस्ती जलाता रहा रौशनी ख़्वाहिशों में सजाता रहा गीत ख़ुशियों के ग़म के तरन्नुम में भी महफ़िलों में सदा गुनगुनाता रहा ख़ुद पे उस का यक़ीं डगमगाया नहीं हर समय ख़ुद को वो आज़माता रहा ख़्वाब उस के कई आसमानों से थे पंख ख़ुद ही मगर वो कटाता रहा उस को मा'लूम फ़ितरत ज़माने की थी हँस के आँसू वो अपने छुपाता रहा उस ने रौशन किया घर किसी और का दिल में तस्वीर जिस की बनाता रहा