वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी चलता हुआ जादू है मोहब्बत की नज़र भी उठने की नहीं देखिए शमशीर-ए-नज़र भी पहले ही लचकती है कलाई भी कमर भी फूटें मिरी आँखें जो कुछ आता हो नज़र भी दुनिया से अलग चीज़ है फ़ुर्क़त की सहर भी साक़ी कभी मिल जाए मोहब्बत का समर भी इन आँखों का सदक़ा कोई साग़र तो इधर भी बेताब हूँ क्या चीज़ चुरा ली है नज़र ने होने को तो दिल भी है मिरे पास जिगर भी घर समझा हूँ जिस को कहीं तुर्बत तो नहीं है आती है यहाँ शाम की सूरत में सहर भी ख़ामोश हूँ मैं और वो कुछ पूछ रहे हैं माथे पे शिकन भी है इनायत की नज़र भी उस के लब-ए-रंगीं की नज़ाकत है न रंगत ग़ुंचे भी बहुत देख लिए हैं गुल-ए-तर भी आती है नज़र दूर ही से हुस्न की ख़ूबी कुछ और ही होती है जवानी की नज़र भी हटती है जो आईना से पड़ जाती है दिल पर क्या शोख़ नज़र है कि उधर भी है इधर भी बीमार-ए-मोहब्बत का ख़ुदा है जो सँभल जाए है शाम भी मख़दूश जुदाई की सहर भी मय-ख़ाना-ए-इशरत न सही कुंज-ए-ग़रीबाँ आँखों के छलकते हुए साग़र हैं इधर भी मिल जाएँ अगर मुझ को तो मैं ख़िज़्र से पूछूँ देखी है कहीं शाम-ए-जुदाई की सहर भी ऐ शौक़-ए-शहादत कहीं क़िस्मत न पलट जाए बाँधी तो है तलवार भी क़ातिल ने कमर भी ऐ दिल तिरी आहें तो सुनीं कानों से हम ने अब ये तू बता उस पे करेंगी ये असर भी इक रश्क का पहलू तो है समझूँ कि न समझूँ गर्दन भी है ख़म आप की नीची है नज़र भी कुछ कान में कल आप ने इरशाद किया था मुश्ताक़ उसी बात का हूँ बार-ए-दिगर भी सोफ़ार भी रंगीन किए हाथ भी उस ने आया है बड़े काम मेरा ख़ून-ए-जिगर भी छुपती है कोई बात छुपाए से सर-ए-बज़्म उड़ते हो जो तुम हम से तो उड़ती है ख़बर भी यूँ हिज्र में बरसों कभी लगती ही नहीं आँख सो जाता हूँ जब आ के वो कह देती हैं मर भी खुलता ही नहीं 'बेख़ुद'-ए-बदनाम का कुछ हाल कहते हैं फ़रिश्ता भी उसे लोग बशर भी