इश्क़ की जो लगन नहीं देखा वो बिरह की अगन नहीं देखा क़द्र मुज अश्क की वो क्या जाने जिस ने दुर्र-ए-अदन नहीं देखा तुज गली में जो कुई किया मस्कन फिर कर उस ने वतन नहीं देखा आरज़ू है कि ज़ुल्फ़ कूँ खोले मैं ने काली रयन नहीं देखा लब-ए-रंगीं दिखा ऐ मादन-ए-हुस्न मैं अक़ीक़-ए-यमन नहीं देखा टुक ज़मीं पर क़दम रखो साजन आज नक़्श-ए-चरन नहीं देखा दिल अबस तिश्ना-लब है कौसर का पिव का चाह-ए-ज़क़न नहीं देखा ग़ुंचा-ए-गुल कूँ देख गुलशन में गर तूँ पिव का दहन नहीं देखा तुझ मसल ऐ 'सिराज' बाद-ए-'वली' कोई साहब-सुख़न नहीं देखा