वो दोस्ती की जाँ से हर इक तार खींच कर मेरा यक़ीन ले गया ग़द्दार खींच कर दिन मोतियों से हाथ की मुट्ठी में हैं बचे ये वक़्त ले गया गले से हार खींच कर हर सम्त भीड़ शोर-शराबा किसे पसंद ले जाती हैं ज़रूरतें बाज़ार खींच कर अफ़्साना चल रहा था मगर मौत ले गई दौरान-ए-ज़िंदगी से ही किरदार खींच कर बस ख़ामुशी से जंग लड़े जा रहे थे हम वो लड़ रहे थे लफ़्ज़ की तलवार खींच कर