वो इक फ़साना करूँगी ज़ाहिर जो बात दिल में दबी हुई है क़दम ज़मीं पर नहीं हैं मेरे मुझे मोहब्बत मिली हुई है सुना है जब से वो आ रहे हैं फ़लक है दामन बिछाए बैठा फ़ज़ा भी जैसे महक रही है हवा भी कुछ कुछ थमी हुई है ख़ुदा गवाह है कि हुस्न ऐसा कहीं भी होगा न इस जहाँ में मिरे मुक़ाबिल हुए हैं जब से नज़र उन्हीं पर जमी हुई है जो उन को देखा तो राज़ जाना है चाँद रौशन उन्हीं के दम से मिटे हैं शब के सभी अंधेरे कि रौशनी भी तभी हुई है उस एक पल जब कहा था उस ने मैं जा रहा हूँ वतन को अपने ठहर गया है ये वक़्त तब से ज़मीं की गर्दिश रुकी हुई है वो ऐसे शामिल हुआ है मुझ में कि मिट गया है वजूद मेरा फ़ना भी उस में बक़ा भी उस में उसी में 'कौसर' बसी हुई है