वो हम से मिलने के लिए आए नहीं कभी हम ने भी राग इश्क़ की छेड़े नहीं कभी तुम कह रहे हो इस लिए हँसते हैं वर्ना तो हम जितने दिल मलूल हैं हँसते नहीं कभी हम को ज़माना छोड़ गया लहरों में मगर लहरों को हम-सफ़र किया डूबे नहीं कभी वो रेगज़ार कर गया सरसब्ज़ बाग़ पर सब पेड़ बा-समर रहे सूखे नहीं कभी वो संग-ए-बे-वफ़ाई चलाता रहा सदा लेकिन वफ़ा के आईने टूटे नहीं कभी 'फ़ैसल' चलो उसी जगह चलते हैं हम जहाँ उस बे-वफ़ा का साया भी गुज़रे नहीं कभी