वो हर तूफ़ाँ जो हम-आग़ोश-ए-साहिल होता जाता है हुसूल-ए-गौहर-ए-ताबाँ में हाइल होता जाता है मिरा ज़ौक़-ए-तजस्सुस कामगार ओ कामराँ होगा दराज़ अब किस लिए दामान-ए-साहिल होता जाता है जो उक़्दा कोशिश-ए-पैहम से आसाँ करता जाता हूँ वो उक़्दा और मुश्किल और मुश्किल होता जाता है न जाने किस तरह किस वास्ते किस दिल से पीता हूँ ज़माना है कि सर्फ़-ए-वहम-ए-बातिल होता जाता है ख़ुदा जाने मुझे वो देखते हैं किन अदाओं से कि ग़म आहिस्ता आहिस्ता मिरा दिल होता जाता है तिरे होंटों से साक़ी जिस क़दर मैं पीता जाता हूँ जवानी का मुझे एहसास-ए-कामिल होता जाता है कहाँ तक शिकवा-ए-बे-मेहरी-ए-अहबाब ऐ हमदम ज़माना दरपए-आज़ार-ए-'बिस्मिल' होता जाता है