वो हम नहीं हैं कि गुलशन पर इख़्तियार के बाद बहार को भी तरसते रहें बहार के बाद निज़ाम-ए-दहर जो है मुंतशिर तो होने दो कि नज़्म-ए-दहर सँवरता है इंतिशार के बाद अभी तो सुब्ह की पहली किरन ही फूटी है जमाल-ए-सुब्ह ज़रा देखना निखार के बाद क़दम क़दम पे मिलेगा हयात-ए-नौ का सुराग़ बला-कशान-ए-मोहब्बत को सैर-ए-दार के बा'द उन्हीं से पूछिए कैफ़-ए-हयात क्या शय है जो मुतमइन हैं ग़म-ए-ज़िंदगी से प्यार के बाद दर-ए-हबीब पे बैठा हूँ सर झुकाए हुए तमाम सिलसिला-ए-तर्क-ओ-इख़्तियार के बाद ग़म-ए-हयात-ओ-ग़म-ए-काएनात भी है अज़ीज़ कुछ अपनी फ़िक्र भी लेकिन ख़याल-ए-यार के बाद उजाल दे जो रुख़-ए-शाम-ए-ज़िंदगी को 'अतीक़' वो सुब्ह आएगी किस सुब्ह-ए-इंतिज़ार के बाद