ये कहकशाँ ये सितारे ये चाँदनी ये बहार निगाह मैं न उठाऊँ तो सब के सब बेकार ये मानता हूँ कि आई चमन में फ़स्ल-ए-बहार लिए हुए मगर अपने जिलौ में बर्क़-ओ-शरार पयाम-ए-दौर-ए-ख़िज़ाँ है वरूद-ए-फ़स्ल-ए-बहार ख़ुदा के वास्ते अहल-ए-चमन ज़रा हुशियार अभी निगाह से कुछ और काम लेने हैं ख़ुदा करे कि न हो आप का मुझे दीदार अभी तो काकुल-ए-गेती में ज़ेहन ग़लताँ है तुम्हारी ज़ुल्फ़ से उलझें भी क्यों मिरे अफ़्कार उन्हीं को बाइ'स-ए-ज़ुल्मत क़रार देते हो है जिन के दम से मुनव्वर फ़ज़ा-ए-तीरा-ओ-तार फ़ुसून-ए-तीरगी-ए-शब है टूटने वाला वो सुब्ह-ए-नौ के नज़र आ रहे हैं कुछ आसार ये इख़्तियार-ए-वफ़ा है मुझे पशेमानी तुम्हारे जब्र-ए-मुसलसल से मैं नहीं बेज़ार 'अतीक़' मेरी परेशानियाँ मआ'ज़-अल्लाह कि जैसे एक मसीहा हज़ार-हा बीमार