वो जिस ने मेरे दिल ओ जाँ में दर्द बोया है कभी कभी मिरी हालत पे ख़ुद भी रोया है बढ़े हुए थे मिरी सम्त कितने प्यार के हाथ कहाँ ये ला के तिरी याद ने डुबोया है जो फूटी पलकों से कोंपल तो जा के राज़ खुला कि उस ने ग़म नहीं सीने में ज़हर बोया है तुम्हीं बताओ कि किस किस से मैं कलाम करूँ हो तुम भी गोया तुम्हारी नज़र भी गोया है फ़ज़ा है तीरा ओ तारीक और उस का ख़याल न जाने कौन सी दुनिया में जा के सोया है चले फिर उठ के उसी ख़्वाब-ज़ार में 'अरशद' अभी तो उस की नज़र का ख़ुमार धोया है