वो जो दोस्त था वो रक़ीब है By Ghazal << मुब्तला-ए-हिरास लगती है रंग लाएगी मिरी सोच की तक़... >> वो जो दोस्त था वो रक़ीब है ये सफ़र भी कितना अजीब है वो जो क़ातिलों के क़रीब है वही शांति का नक़ीब है मुझे ग़म मिला तुम्हें हर ख़ुशी ये तो अपना अपना नसीब है हमें इंक़लाब से क्या मिला जो ग़रीब था वो ग़रीब है Share on: