वो जो उफ़ुक़ के पार है मंज़र छुपा हुआ उस में ज़रूर है तिरा पैकर छुपा हुआ डर है कि बह न जाए कहीं आँसुओं के साथ इक अक्स मेरी आँख के अंदर छुपा हुआ क्या जाने कब उबल पड़े धरती को चीर कर ज़ेर-ए-ज़मीं लहू का समुंदर छुपा हुआ मैं इस लिए भी दोस्त बनाता हूँ कम से कम जाने किस आस्तीं में हो ख़ंजर छुपा हुआ सैराब कौन और यहाँ तिश्ना-लब है कौन हर आँख में है दश्त का मंज़र छुपा हुआ