वो लाख अपना था पर ए'तिबार किस का था कोई ये पूछे हमें इंतिज़ार किस का था बगूले उठते थे हँसते थे रहगुज़ारों पर हवाएँ सब्ज़ थीं उन में ग़ुबार किस का था दिलों पे छाई हुई धुंद थी सदाओं की तबाहियों पे मगर इख़्तियार किस का था तमाम पेड़ ज़मीं-बोस हुए जाते हैं बिसात-ए-ख़ाक पे फूलों का हार किस का था