या ख़ुदा मुझ को वो अंदाज़-ए-शकेबाई दे मिरे चेहरे को मिरे ज़ख़्मों की गहराई दे फ़ाश हो जाएँ मिरी रूह पे कौनैन के राज़ मुझ को वो आँख दे आँखों को वो बीनाई दे आप ही अपने को संगसार किया है मैं ने मेरे क़ातिल को न इल्ज़ाम-ए-मसीहाई दे कब तलक तरसूँगा काँटों भरे पैराहन को बरहना-तन हूँ मुझे ख़िलअत-ए-रुस्वाई दे मिरे चेहरे पे ये लब हैं कि सुलगता हुआ ज़ख़्म मिरे लफ़्ज़ों को ज़बाँ या मुझे गोयाई दे