वो मस्त-ए-नाज़ आता है ज़रा होश्यार हो जाना यहीं देखा गया है बे-पिए सरशार हो जाना हमारा शग़्ल है रातों को रोना याद-दिलबर में हमारी नींद है महव-ए-ख़याल-ए-यार हो जाना लगावट से तिरी क्या दिल खुले मालूम है हम को ज़रा सी बात में खिंच कर तिरा तलवार हो जाना अबस है जुस्तुजू बहर-ए-मोहब्बत के किनारे की बस इस में डूब मरना ही है ऐ दिल पार हो जाना नहीं दरकार मय हम को पिए जा तू ही ऐ साक़ी हमें तो मस्त करता है तिरा सरशार हो जाना