वो नैरंग-ए-उल्फ़त को क्या जानता है कि अपने से मुझ को जुदा जानता है कुछ ऐसी तो दुश्मन में ख़ूबी नहीं है मगर तू ख़ुदा जाने क्या जानता है ये मुँह से तो कहता हूँ छोड़ी मोहब्बत मगर हाल दिल का ख़ुदा जानता है तुम्हारी शरारत को क्या जाने कोई ये मैं जानूँ या दिल मिरा जानता है 'ज़हीर' अपने ऐबों को मैं जानता हूँ ज़माना मुझे पारसा जानता है