वो नशा कब किसी शराब में है जो ख़ुमार आप के शबाब में है चाँद से कह दो अब निकल आए मेरा महबूब अब नक़ाब में है तुझ को छू कर जो मुझ तक आती है वो महक कब किसी गुलाब में है पास आ कर तिरे हुआ महसूस ऐसी ठंडक तो माहताब में है अपने रुख़ से हटाइए ज़ुल्फ़ें चाँद किस वास्ते सहाब में है