आरज़ी आसाइशों की चाह करना छोड़ दे फ़िक्र-ए-उक़्बा ज़ह्न में रख फ़िक्र-ए-दुनिया छोड़ दे कुछ अमल का ज़िक्र कर कुछ बात कर किरदार की क़ैसर-ओ-किसरा का अब तो ख़्वाब बुनना छोड़ दे कश्तियाँ भी बादबानों की नहीं मुहताज अब आरज़ी हो जो सहारा वो सहारा छोड़ दे ज़िंदगी अंदोह-ए-ग़म में घुट के रह जाए अगर जज़्बा-ए-ग़म आँसूओं की शक्ल बहना छोड़ दे वस्ल का वा'दा किया है तो इसे पूरा भी कर ये नया हर रोज़ का हीला बहाना छोड़ दे एक दिन तो दिल को भी तरजीह दे कर देख लूँ अक़्ल से कह दो कि मुझ को आज तन्हा छोड़ दे काश आ जाए पलट कर वो सुनहरा दौर फिर भाई भाई के लिए मुँह का निवाला छोड़ दे अपने हाथों से कमाने की लगन दिल में नहीं चाहता है आज बेटा बाप विरसा छोड़ दे देख खा जाएँ न आहें बे-कस-ओ-मज़लूम की ऐ अमीर-ए-शहर अब भी ज़ुल्म ढाना छोड़ दे मुल्क की गलियाँ लहू पीने की आदी हो न जाएँ ये तअ'स्सुब ज़ह्र का ज़ेहनों में भरना छोड़ दे मज़हबी जज़्बात के सारे पिटारे बंद कर ऐ सियासत के मदारी ये तमाशा छोड़ दे चाँद को छूने की कोशिश अहमक़ाना फ़े'ल है जो न हासिल हो सके उस की तमन्ना छोड़ दे ता-क़यामत याद रक्खे तुझ को ये दुनिया 'सलीम' अपने किरदार-ओ-अमल का नक़्श ऐसा छोड़ दे