वो नाता तोड़ते हैं और गिला भी करते हैं नहीं मिलेंगे ये कह कर मिला भी करते हैं तमाम उम्र ही अपनी रफ़ू-गरी में गई ये ज़ख़्म हैं ये यक़ीं था सिला भी करते हैं बिछड़ गए जो कहाँ उन की आस हो कोई मगर जो कह के ये जाएँ मिला भी करते हैं हैं कैसे हम कि जो क़ुर्बान हैं तसलसुल से हैं कैसे वो कि जो हम से गिला भी करते हैं कहा भी था यही उन से ख़िज़ाँ अभी तक है ख़िज़ाँ रुतों में भला गुल खिला भी करते हैं कहीं हो जाएँगे बेबस रिवायतों के अमीं कभी पहाड़ जगह से हिला भी करते हैं है राहगुज़ार ही ऐसी ये प्यार की 'आमिर' बसर हो ख़ाक में पाँव छिला भी करते हैं