वो पहले सोच लें खिलती हुई कली क्या है जो सोचते हैं कि तरकीब-ए-ज़िंदगी क्या है किधर है ग़ैरत-ए-ग़म कुछ मुझे सहारा दे वो मुझ से पूछ रहे हैं तिरी ख़ुशी क्या है वफ़ा का राज़ न समझा सका कोई अब तक कि इस की क्या है हक़ीक़त ये वाक़ई क्या है यही तो होती है सारे रुख़ों का आईना कोई समझ के तो देखे कि बे-रुख़ी क्या है दम-ए-अख़ीर है किस का ख़याल जल्वा-फरोज़ ये मेरी मौत की हद में हयात सी क्या है दराज़ उम्र हो ऐ जीने वाले तेरी मगर जो सिर्फ़ अपने लिए हो वो ज़िंदगी क्या है न जाने क्या हो कि मेरी ही रौशनी में 'शिफ़ा' ख़ुदी ये सोच रही है कि बे-ख़ुदी क्या है