यक़ीं उन पे लाने को जी चाहता है फ़रेबों में आने को जी चाहता है सितारों में ओ दूर से हँसने वाले तिरे पास आने को जी चाहता है ब-ज़ोर-ए-नियाज़ आस्ताँ को किसी के जबीं तक बुलाने को जी चाहता है मोहब्बत में इतना हूँ महव-ए-मोहब्बत उन्हें भी भुलाने को जी चाहता है हसीं जिस के दिन हों हसीं जिस की रातें वो दुनिया बसाने को जी चाहता है क़सम है तुझे मुस्कुरा बे-तकल्लुफ़ मिटा गर मिटाने को जी चाहता है जहाँ तुम फ़रोज़ाँ नज़र आ रहे हो वहीं जगमगाने को जी चाहता है है जिस में ख़ुद अपनी तजल्ली का धोका वो पर्दा उठाने को जी चाहता है सलामत रहे रिफ़अत-ए-इश्क़ हमदम कहाँ सर झुकाने को जी चाहता है दम-ए-सुब्ह लब-बस्ता कलियों को जा कर 'शिफ़ा' गुदगुदाने को जी चाहता है