वो सब से आगे अंधेरे में जो चराग़ थामे खड़ा हुआ है सियाह रातों में गुम-शुदा मंज़िलों को रस्ता दिखा रहा है झुलसते मौसम में मुन्हरिफ़ है पराए पेड़ों की छाओं तक से अना का रुत्बा बढ़ाया उस ने वो अपनी शर्तों पे जी रहा है हवा की मर्ज़ी दिया बुझाए या ख़ुशबुओं को रिहाई दे दे कहीं पे दीवार है ये गोया कहीं कहीं पर ये रास्ता है तू जानता है तिरी नज़र से हर एक मंज़र को देखती हूँ तुझे पता है कि तेरी आँखों का रंग बिल्कुल मिरी तरह है बदलती रुत में बदल गया है हमारी नज़रों का ज़ाविया भी उदास पत्तों पे रूप आया ख़िज़ाँ का चेहरा दमक रहा है गुज़र चुका है वो इस सड़क से बड़ी ख़मोशी के साथ अब के ये कोई दस्तक नहीं है दर पर हवा की साज़िश है वाहिमा है ये तेरी निस्बत का फ़ैज़ है जो टले हुए हैं 'अज़ाब सारे ये मेरी दुनिया में अब तलक जो भी ख़ैर है वो तिरी दु'आ है