वो संग हो कि शजर कर्ब-ए-इंतिज़ार में है किसे ये इल्म है क्या पर्दा-ए-ग़ुबार में है कशाँ कशाँ लिए जाती है तुम को जिस की कशिश वो साया साया सदा बहर-ए-बे-कनार में है कराऊँगा तिरी जाँ-बख़्शी नज़्र-ए-जाँ कर के मुझे बता तो सही किस के इख़्तियार में है कहाँ का क़स्द करूँ कुछ पता तो हो मालूम सुना है इतना किसी अजनबी दयार में है सुकूत-ज़ा ही नहीं है सुख़न-तराज़ भी है ज़रूर शो'ला कोई संग-ए-रहगुज़ार में है ये है कि शे'र का असरार-आश्ना है वो वगर्ना रक्खा क्या उस में है किस शुमार में है