वो सुब्ह का निकला हुआ शब तक नहीं आया क्या बात हुई ऐसी कि अब तक नहीं आया उस ने तो बिछड़ के नहीं भेजा कोई ख़त भी क्यों उस की ख़मोशी का सबब तक नहीं आया हम उस के लिए राह में मुद्दत से खड़े हैं इक वो है कि इस मोड़ पे अब तक नहीं आया वो जाम-ब-कफ़ आ तो रहा था मिरी जानिब वो जाम मगर मेरे ही लब तक नहीं आया मैं ने तो क़सीदे भी कई लिक्खे थे 'साक़िब' पर मेरा क़लम हुस्न-ए-तलब तक नहीं आया