वो तमाशा आप की जादू-बयानी से हुआ एक सन्नाटा हमारी बे-ज़बानी से हुआ एक पल में उठ गए पर्दे कई असरार से वो न होता जो ज़रा सी बद-गुमानी से हुआ बढ़ गई कुछ ताक़त-ए-गुफ़्तार भी रफ़्तार से शोर पैदा मौज-ए-दरिया में रवानी से हुआ उड़ गई ख़ुशबू हवा में धूप रंगत ले उड़ी फ़ाएदा क्या ख़ाक-ए-गुल की पासबानी से हुआ जो भी होना था हुआ लेकिन ये हैरत है 'शहाब' आप जैसे मेहरबाँ की मेहरबानी से हुआ