मैं अपने-आप से पीछा छुड़ा के निकल जाऊँ कहीं रस्सी तुड़ा के क़दम आख़िर उठाना ही पड़ेगा नहीं तो गिर पड़ूँगा डगमगा के कहाँ है अब वो मश्क़ आवारगी की सँभल जाऊँगा लेकिन लड़खड़ा के किसी के दर पे जाने का नतीजा मैं देख आया हूँ उस के दर पे जा के बसर की इस तरह दुनिया में गोया गुज़ारी जेल में चक्की चला के लिखी है बंदगी में सर-बुलंदी मिलो हर आदमी से सर झुका के किसी के काम आओ ज़िंदगी में ख़ुशी होगी किसी के काम आ के