वो तन्हा मेरे ही दरपय नहीं है किसी से ख़ुश हो ये भी तय नहीं है यहाँ की मसनदें सब के लिए हैं ये मेरा घर है क़स्र-ए-कय नहीं है अभी ग़ुंचा अभी गुल और अभी तुख़्म तो क्यूँ कहिए कि हस्ती है नहीं है तग़य्युर इर्तिक़ा दस्तूर-ए-फ़ितरत न बदले जो वो कोई शय नहीं है मगस की ख़ाक-ए-पा नुतफ़ा एनब का कशीद-ए-गुल मगस की क़य नहीं है वो कैसी शख़्सियत जिस में न हो रूह वो कैसा शीशा जिस में मय नहीं है वो क्या झरना न जिस से राग फूटे वो कैसा नग़्मा जिस में लय नहीं है वो फीका वाज़ जिस में कर्ब मादूम वो झूटा साज़ जिस में नय नहीं है वो कैसी बज़्म जिस में सब हों गूँगे वो जन्नत क्या जहाँ हर शय नहीं है वो क्या 'वामिक़' जो निचला बैठ जाए वो कैसा फ़ासला जो तय नहीं है