वो थे पहलू में और थी चाँदनी रात हमारी ज़िंदगी थी बस वही रात अजब चश्मक-ज़नी थी वस्ल की रात नज़र उन की थी और तारों-भरी रात निगाह-ए-मस्त उन की कह रही है कहीं होती रही साक़ी-गरी रात अबस है वादा-ए-फ़र्दा तुम्हारा मरीज़-ए-इश्क़ की है आख़िरी रात किसी ने वादा-ए-फ़र्दा किया है हमें मर कर बसर करनी पड़ी रात 'तबस्सुम' से किसी के बन गई थी मिरी ख़ल्वत सरापा चाँदनी रात