वो उधर सोगवार बैठे हैं हम इधर शर्मसार बैठे हैं हम-नवा हो गए वो ग़ैरों के करके हम इख़्तियार बैठे हैं दौर-ए-हाज़िर में नौजवाँ लाखों तालिब-ए-रोज़गार बैठे हैं बेवफ़ा आज तेरे वा'दे पर करके हम ए'तिबार बैठे हैं लुट गए बे-ख़ुदी में हम ऐसे बन के दुनिया पे बार बैठे हैं आज हो इज़्न-ए-आम ऐ साक़ी मुंतज़िर बादा-ख़्वार बैठे हैं कोई पूछे 'शरार' ये उन से आज क्यों अश्क-बार बैठे हैं