वो वफ़ा को जफ़ा समझते हैं हम जफ़ा को वफ़ा समझते हैं क्या बताएँ वो क्या समझते हैं ख़ुद को शायद ख़ुदा समझते हैं ऐ बुतो तुम को क्या समझते हैं जो ख़ुदा को ख़ुदा समझते हैं क्या कहें तुम को क्या समझते हैं बंदा-पर्वर ख़ुदा समझते हैं अपनी ख़ल्वत में दख़्ल दें क्यूँकर वो मिरा मुद्दआ' समझते हैं क्यों हों मम्नून हज़रत-ए-ईसा दर्द को जो दवा समझते हैं जिन को दुनिया में कुछ नहिं आता अब उन्हें पेशवा समझते हैं आह-ओ-फ़रियाद-ओ-नाला-ओ-शेवन आशिक़ी की सज़ा समझते हैं जौर-ए-गर्दूं को सच अगर पूछो आप की इक अदा समझते हैं मय-कदे में इलाज है उस का सब जिसे ला-दवा समझते हैं बदतरीन-ए-गुनाह दुनिया में हम तो किब्र-ओ-रिया समझते हैं ऐसे ख़ुश-फ़हम भी हैं दुनिया में शैख़ को पारसा समझते हैं रिंद पीर-ए-मुग़ाँ को ऐ 'शाग़िल' मय-कदे का ख़ुदा समझते हैं