ज़िक्र-ए-वफ़ा पे कहते हैं तेरी वफ़ा है क्या मालूम है कि इश्क़ में उस की सज़ा है क्या मिलता है बे-तलब तो तलब और दुआ है क्या सुनिए तरीक़ शुक्र का इस के सिवा है क्या मुर्दा दिलों से कोई तवक़्क़ो' फ़ुज़ूल है मर कर भी आज तक कोई ज़िंदा हुआ है क्या तुम तो तुम्हीं हो आइना जो चाहे वो कहे अहल-ए-नज़र के सामने बहरूपिया है क्या बनता है क़ल्ब नक़्द तो होता है नक़्द क़ल्ब वो सीमिया है उस की नज़र कीमिया है क्या हर शय में जल्वा-गर है तू हर शय से बे-नियाज़ क्यूँकर पता चले कि सिवा मा-सिवा है क्या आँखों में अश्क रंग-ए-परीदा हवास गुम ऐ नामा-बर बता तो सही माजरा है क्या दो चार जाम दे तो दिए मोहतसिब तुझे तौबा का और इस के सिवा ख़ूँ-बहा है क्या हर हर नफ़स नफ़स नहीं बाँग-ए-रहील है अहल-ए-ख़िरद के वास्ते बाँग-ए-दरा है क्या क़ाएम है उस की सम्त न लग़्ज़िश न इज़्तिराब मेरी जबीं के सामने क़िबला-नुमा है क्या कश्ती ख़ुदा पे छोड़ दे ऐ मीर-ए-कारवाँ तूफ़ान किस को कहते हैं और नाख़ुदा है क्या 'शाग़िल' क़मर के हुस्न-ए-मोहब्बत का है असर वर्ना शराब-ए-शे'र में बाक़ी नशा है क्या