या-इलाही ये आरज़ू निकले दम मेरा उन के रू-ब-रू निकले ढूँडने जिन को कू-बकू निकले वो मिरे घर के रू-ब-रू निकले दाद ऐ हुस्न-ए-इंतिख़ाब-ए-नज़र वो तसव्वुर से ख़ूब-रू निकले आप का नक़्श-ए-पा रहा रहबर जब भी हम बहर-ए-जुस्तुजू निकले अश्क बहता है तेरी यादों में बात है आँख से लहू निकले शायरी और क्या 'मुई'न' की है आप की जैसे गुफ़्तुगू निकले