महफ़िल में थी दिलों में कोई रौशनी न थी कहने को ज़िंदगी थी मगर ज़िंदगी न थी उम्मीद-ओ-आस की तो कोई रौशनी न थी फिर भी मिरी ख़ुशी में कहीं कुछ कमी न थी यूँ देखिए चमन में गुलों की कमी न थी यूँ सोचिए तो रंग न था ताज़गी न थी तेरी ये बे-रुख़ी तो फ़क़त बे-रुख़ी न थी दिल का सवाल था ये कोई दिल-लगी न थी उन के मिज़ाज में कभी इतनी कजी न थी अंजान थे वो हम से मगर बे-रुख़ी न थी मानूस थी नज़र तिरे अंदाज़-ए-दीद से दुज़्दीदा थी निगाह मगर अजनबी न थी