याद आता है तो क्या फिरता हूँ घबराया हुआ चम्पई रंग उस का और जौबन वो गदराया हुआ बात ही अव्वल तो वो करता नहीं मुझ से कभी और जो बोले है कुछ मुँह से तो शरमाया हुआ जा के फिर आऊँ न जाऊँ उस गली में दौड़ दौड़ पर करूँ क्या मैं नहिं फिरता है दल आया हुआ बे-सबब जो मुझ से है वो शोला-ख़ू सरगर्म-ए-जंग मैं तो हैराँ हूँ कि ये किस का है भड़काया हुआ वो करे अज़्म-ए-सफ़र तो कीजिए दुनिया से कूच ये इरादा हम ने भी दिल में है ठहराया हुआ नोक-ए-मिज़्गाँ पर दिल-ए-पज़-मुर्दा है यूँ सर-निगूँ शाख़ से झुक आए है जूँ फूल मुरझाया हुआ जाऊँ जाऊँ क्या लगाया है मियाँ बैठे रहो हूँ मैं अपनी ज़ीस्त से आगे ही उकताया हुआ तेरी दूरी से ये हालत हो गई अपनी कि आह अन-क़रीब-ए-मर्ग हर इक अपना हम-साया हुआ क्या कहें अब इश्क़ क्या क्या हम से करता है सुलूक दिल पे बे-ताबी का इक प्यादा है बिठलाया हुआ है क़लक़ से दिल की ये हालत मिरी अब तू कि मैं चार-सू फिरता हूँ अपने घर में घबराया हुआ चुपके चुपके अपने अपने दिल में सब कहते हैं लोग क्या बला वहशत हुई है इस को या साया हुआ हुक्म बार-ए-मज्लिस अब 'जुरअत' को भी हो जाए जी ये बिचारा कब से दरवाज़े पे है आया हुआ