याद दिलाओ मत उन को वो रात और दिन चैन उन्हें अब आ जाता है मेरे बिन मछली कैसे रहती है पानी के बिन हाल से मेरे ख़ूब हैं वो वाक़िफ़ लेकिन लर्ज़ीदा लब पर था भुला तो न दोगे हमें नम-दीदा आँखों ने कहा था ना-मुम्किन दिल के दो हर्फ़ों जैसे ही एक हैं हम इक मुतहर्रिक हर लम्हा और इक साकिन चेहरे से ज़ाहिर है दिल की कैफ़िय्यत कितना छुपाएगा कोई अक्स-ए-बातिन किस किस की बातों में दिल आ जाता है किस को पता है कब आएँगे अच्छे दिन मातम-पुर्सी मत कर ऐ मुँह-ज़ोर हवा कितने पत्ते टूटे अब तादाद न गिन एहसानात लुटाए जाते हैं 'राग़िब' सब्ज़ दरख़्तों जैसे हैं मेरे मोहसिन